डर, भय ( फोबिया)- मनोरोग 

Phobia (फोबिया)
डर, भय ( फोबिया)- मनोरोग 

हमेशा डर और भय रहने की अवस्था को फोबिया के नाम से पहचाना जाता है। बिया या डर, भय अनेक प्रकार के होते है। जिसमें से आज हम सामाजिक डर (सोशल फोबिया) और एगोरा फोबिया की बात करेंगे।
सामाजिक फोबिया का प्रमाण लोगो में हर सो पर २ से ३ इन्सानो में दिखाई पडता है।

इस रोग में मरीज को सामान्यतः नीचे दिए गए लक्षण होते है।
(1) कुछ सामाजिक अवस्थाओ में लगातार और ज्यादा मात्रा में डर और भय सामान्यतः जहाँ ज्यादा लोग इकट्ठे होनेवाले हो वैसी सामाजिक अवस्था जैसी कि शादीब्याह, पार्टी और अन्य बहुत सारे सामाजिक प्रसंग की जहाँ ज्यादा मात्रा में लोग इकट्ठे होनेवाले हो ऐसे रोग के इन्सान को किसी दूर के रिश्तेदार के घर जाना हो या अजनबी लोगो के पास जाना हो तब भी ज्यादा डर या भय महसूस होता है। इन इन्सानो में कई बार परफोमन्स एन्कसाईटी भी दिखाई पड़ती है। जैसे कि लोगो की टोली को संबोधन करते समय या किसी नोकरी धंधे के लिए ईन्टरव्यु देने का हो या परीक्षा में परीक्षक को जवाब देनेमें भी ज्यादा चिंता, डर और भय रहता है। ईन्सान को सामान्यतः ऐसा डर होता है कि या वो इस प्रकारकी सामाजिक अवस्था में अनुमान के मुताबिक प्रदर्शन कर सकेगा की नही।
(2) उपर बताई गई सामान्य डर या भय की अवस्था में अगर ऐसे मरीज को रखा जाए तो वह खुब ज्यादा चिंता पेदा करता है और ऐसे संजोगो में मरीज के हदय की धडकन बढ जाती है, धबराहट होती है, पसीना होता है, बेचेनी और व्याकूलता महसुस होती है, मुंह सुखता है, हाथ पैर सुन हो जाते है और स्नायुओ में तनाव महसूस होता है।
(3) मरीज को लगता है कि यह डर और भय, डर की अवस्था से ज्यादा मात्रा में और काम बिन व्याजबी है।
(4) मरीज ऐसी अवस्था और संजोगो में जाना टालता है और घर पर ही बैठा रहता है। धीरे धीरे जैसे रोग आगे बढ़ता जाता है वैसे मरीज घर के बाहर नीकलने से भी धबराता है और कहीं जाना हो तो भी किसी के साथ ही जाना पसंद करता है।
(5) इसके कारण मरीज का सामाजिक, आर्थिक और व्यवसायलक्षी विकास दबता है। फोबिया एक सामान्य बिमारी है जिससे बहुत लोग पीडित है।

स्पेशीफीक फोबिया

इस प्रकारकी मानसिक बीमारी 15 से 20 प्रतिशत मरीजो में दिखाई पड़ती है। सामान्यतः यह बीमारी बच्चोमें और जवान वय के ईन्सानो में ज्यादा देखने मिलती है। यह रोग में मरीजको खास किसी चीज या अवस्था का डर होता है। ऐसी किसी चीज या अवस्था के संपर्क में आते ही मरीज को खुब चिंता होती है और वह बेचेन बन जाता है।

इस प्रकार के मरीजो में सामान्यत: नीचे के लक्षण दिखाई पडते है।
(1) कोई भी चीज या अवस्था का बहुत ज्यादा और हमेशा डर जो बिनव्याजबी और खुब ज्यादा चिंता कराने वाला होता है। इस प्रकारकी चीजो में खास करके अग्नि, पानी काच की चीजे. प्राणीओ के ईन्जेक्शन की सूई, रक्त आदि का डर ज्यादा सताता हो उस ईन्सान को दो-तीन माल के मकान से नीचे दिखाया जाए तो उसके हृदय की धडकन बढ जाती है। धबराहट होती है, शरीर कांपने लगता है और रुआंटी खडी हो जाती है। इसी तरह हर चीज के पास इन्सान को ले जाने से उपर प्रमाणे के चिन्ह दिखाई पड़ते है।
(2) ऐसी चीजो के संपर्क में आते ही तुरंत मरीज को खूब ज्यादा चिंता होने लगती है। उसे पसीना आ जाता है, हाथ-पैर कांपने लगते है और मरीज खूब ज्यादा व्याकुल हो जाता है।
(3) मरीज को लगता है कि यह डर और भय जरुरत से ज्यादा और बिनव्याजबी है।
(4) मरीज ऐसी चीजे और अवस्थाओ से दूर रहना पसंद करता है और जाने अनजाने ही ऐसी चीज उसके संपर्क मे न आए उसका ध्यान रखता है।
(5) उपर प्रमाणे के चिन्ह कम से कम छ महिने या उससे ज्यादा समय से होने चाहिए। इसके कारण मरीज का शारीरिक, आर्थिक और व्यवसायलक्षी विकास नही होता। यह एक अति सामान्य बिमारी है जिससे लोग परिचित नही होते और किसी प्रकारकी ट्रीटमेन्ट नही लेते।

  इस प्रकार की बिमारी का  टीटमेन्ट हो सकता  है। जिसमें बिहेवियर थेरापी मतलब कि गेहेड एक्सपोझर की टेकनीक से मरीज को खुब धीरेधीरे और शांति से डरवाली चीज के पास लाने की कोशिश की जाती है और कुछ दवाईयों भी असरकारक है। योग्य मनोचिकित्सक का संपर्क करना आवश्यक है।

  ज्यादातर ईन्सानो को हमले के बाद भी हमेशा डर सताता रहता है कि ऐसा हमला दूबारा आएगा तो क्या करूंगा और डर ही डर में वे अकेले घर से बाहर निकलना या अकेले यात्रा करना टालते है। इसे हगोरा फोबिया के नाम से पहचाना जाता है। हगोरा फोबिया के कारण लन्सान का सामाजिक, आर्थिक और व्यवसायिक विकास दबता है। ऐसे संजोगो में मरीज को किसी मानसिक रोग के डोक्टर का संपर्क करना योग्य है।

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